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कविता

बदला लो जमाना

अमरसिंह रमण


परदे की परछाइयों से ना रह बेखकर
वक्‍त बडा़ कीमती है इसे कब्‍जे में पकड़

तू किसी आडंबरी वेशभूषा से ना डर
तू भी बाबू पंडित बने पहले हिंदी तो कुछ पढ़

तेरे ललाट पर लिखी है भविष्‍य की सब बात
मेरी बातों को मान किस्‍मत देगी तेरा साथ

इधर-उधर घूमने से होता है आखिर होता है क्‍या फायदा
लोग तुम्‍हें जहुआ कहेंगे और बिगडा़ हुआ कायदा

फिल्‍मी सितारों के पीछे ना रो-रोकर गाओ
सुभाष के जैसे तिरंगा उडा़ओ

मरने पर भी याद दुनिया करेगी
तेरे नाम पर कुली की शान बढे़गी

सूरीनाम का नाम कायम रखो तुम
पढ़ लिखकर हिंदी में कुछ नाम करो तुम

 


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